Friday 12 September 2014

पह्रल लिखल निपतीत लाती ख्वाजल बाटु

मुक्तक 
पह्रल लिखल निपतीत लाती ख्वाजल बाटु
मनक पिर दुख बुझ्ना छाती ख्वाजल बाटु
संघ मुना संघ जीना सहारा जिन्दगी भर
जिन्दगीन अज्रार देना बाती ख्वाजल बाटु

®राम पछलदङग्याँ अनुरागि

सुरुम देख्नु तुहार गाउ, बनवा झारी मन परल

Gazal
सुरुम देख्नु तुहार गाउ, बनवा झारी मन परल 
भ्याट हुइल जब घर,मनैन खेत,बारी मन परल 

सजल देख्नु हर सिंगारमा मन थाम्ह नै सेक्नु
चुरिया गुरिया लाली तिक्ली लाल सारी मन परल 

बर बर आखी,बुल्बुली वाला भुत्ला गोर्हर गाल व
हाँथ भर भर लगाइल चुरियाके लारी मन परल 

मोर किल दोस नैहो मैया जोर्ली दुनुजे मिल जुलके 
हर पलम साथ देना तुहार जसिन नारी मन परल 

सुमित रत्गैया

Monday 8 September 2014

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📝 सुचना 📝  सुचना  📝 सुचना

जंग्रार थारू साहित्यिक बखेरी ( शाखा ) मलेशियाके
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Monday 1 September 2014

दिनभर भुँख्ल जिउ ढर्ख मनाइ अट्वारी /

गजल 
दिनभर भुँख्ल जिउ ढर्ख मनाइ अट्वारी /
बल्गर देव भेवाँ पुजा कर्ख मनाइ अट्वारी //

ऎतिहासिक महत्व नुकल बा अट्वारी म /
जिउधन रक्षा मन्त्र पहर्ख मनाइ अट्वारी //

दिहे जाइ अग्ग्रासन दिदी बाबू हुकन सब्ज /
दिदी बाबु हुकन्के मन भर्ख मनाइ अट्वारी //

अल्ग पहिचान झल्कठ आदिवासी थारुन्के /
पर्व जनैना म लागि पर्ख मनाइ अट्वारी //

च्वाखा मन ले अग्र भाग अल्गाख पैल्ह /
सक्क ु ज महाँ अर्गर्ख मनाइ अट्वारी //

थारुन्के महान पर्व अट्वारिके उपलक्ष्यम सम्पुर्ण प्रिय मित्रजन अग्रज सुभचिन्तक तथा साहित्य्क मन हरु म हार्दिक मङ्गल्मय सुभकामना ब्यक्त गर्दछु /

बुद्दिराम चौधरी 
डुरुवा ,6 धमकापुर दाङ्ग नेपाल

Sunday 31 August 2014

दिदी बाबुन सम्झती 'लेख अइनु अग्रासन

गजल

दिदी बाबुन सम्झती 'लेख अइनु अग्रासन ।
मनक पिर बिर्सती 'लेख अइनु अग्रासन ॥

बट्या हेर्ती बैठ्ल रहो झट् आइटु मै दिदी ।
घाम पानी नई कति 'लेख अइनु अग्रासन ॥

भेत घाँट कर्ना आश लेख् दिदी बाबुन से ।
काम काज रती रती 'लेख अइनु अग्रासन ॥

ढ्वाग सलाम कर्ती गोन्ड्री बिछाख देली ।
सुखक दुखक  जती'लेख अइनु अग्रासन ॥


राम पछलदङग्याँ अनुरागि

हेकुली ८ दाङ

आव मलेसिया





Monday 25 August 2014

छोक्रा नाच

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अँट्वारी पर्व एक चर्चा

अँट्वारी पर्व ः एक चर्चा
—छविलाल कोपिला
अँटवारी, माघ ट्यूहार पाछक थारू जातिनके दुस्रा भारी ट्युहार मान्जाइठ् । यिहेसे फेन अँट्वारीहे थारू जातिनके महत्वपूर्ण व्रत पर्वके रुपमे लेजाइठ् । मुले अँट्वारीके बारेमे विभिन्न मतमतान्तर फेन हुइटी आइल बा । ठाउँ अनुसार चाल चलनमे विविधता बा ओ एकर पृष्ठभूमिके बारेमे विभिन्न धारणा आगे आइल बिल्गाइठ् । यिहेसे एकर निश्चित तिथि, मिति हुइना जरुरी रहल बातके फेन बहस हुइटी आइल बा ।
अँट्वारी खास कैके भादो महिनामे परठ् मुले कौनो साल कुवाँरमे अँट्वारी मन्लक फेन देखजाइठ् । मने जारलेसे फेन अँट्वारी ढेरहस् अष्टिम्की पाछेक दुस्रा अँट्वार अथवा कुश अमाँवस (कुशे औंशी) पाछेक पहिल अँट्वारहे अँट्वारी मन्ना चलन बा । 
अँटवारी फेन कोइ बर्का अँटवारी किल मानठ् कलेसे कोइ–कोइ पाँच अँटवार अँटवारी व्रत रठाँ । पाँच अँट्वार पाछे ठिक्के डशिया परठ् । असौंक अँटवारी हेर्न हो कलसे भादो महिनक १५ गतेहे बर्का अँटवारी मन्न ओ पाँच अँटवारी मनुइयन भादो २२, २९ गते ओ कुवाँर महिनक ५ ओ १२ गते व्रत बैठ्ना विल्गाइठ् । असिके पाँच अँटवरिनके व्रत बैठना चलनसे फेन कुश अमाँवसके पहिल अँटवार हे अँटवारी मन्न चलनके प्राण बल्गर विल्गाइठ् । 
कुछ मनैनहे धारणा हिन्दु नारीने तीज पाछक अँटवारहे अँटवारी मन्न चलन बा कैह्के कठाँ लकिन यी ओत्र सान्दर्भिक नै हो । का करे कि पहिले आजुक नन्हें सक्कु जातिनके मिश्रित बसाइ नै रहे थारु समुदायमे ओ ओइनके तीजसे फेन कौनो सम्बन्ध फेन नै रहे । उहेसे तीजहे आधार बनैना जरुरत नै हो । यद्यपि पहिल अँटवार ढेरहस् तीजके पाछे परठ् । यी एकठो संयोग किल हो । कबो–कबो ते तीजक दिन फेन परल रहठ् । पछिल्का समयमे यी तर्क व्यापकता पाइल विल्गाइठ् ओ मनैं दुइ विधामे परके कारदुई–तीन अँटवारी माने पर्न समस्या देख परठ् । 
मुले, तीज मान्के अइना अँटवारीसे कौनो कौनो पाँच अँटवरियनके अँटवारी प्रभावित बनादेहठ् । असिके हेरेबेर हमार पुर्खन यी सक्कु चाजहे ध्यानमे धैके अमाँवस्के पहिल अँट्वारहे बर्का अँट्वारीके रुपमे लेलक हुई कना तर्क बल्गर बिल्गाइठ् । कौनो–कौनो साल पितरपक्ष या समय हान परठ् ते पाँच अँट्वरियनके अँँटवारी फेन बिगर जैठिन् ओइने सक्कु अँटवारी माने नै पैठाँ ओ अँटवारी फेन दुइठो या तीनठो हुइलागठ् । 
प्रकृति पुजक थारू समुदाय खास कैके यी पर्व दिन (सूरज, सूर्य) के पूजा कैना मानजाइठ् । यकर उत्पत्ति भदौ महिनक अँधरियामे हुइल रहे । जौन दिन कुश अमावँसके पहिल अँट्वार रहे । अँटवारहे रविबार फेन कठाँ । रवि कलक सुरज । जब भयावन अँधरिया रातमे सुरजके जन्म हुइल । तबसे यी संसार ओज्रार हुगैल् कना किम्बदन्ती बा । प्रकृतिप्रति विश्वास कैना थारु समुदाय, सूरज ओज्रारके प्रतीक हुइलक ओरसे फेन यकर पूजा ओज्रारदाताके रुपमे कैलक हुइट् । सूरज अँधार चीरके ओज्रार कराइठ् । जिहीसे मनैनहे किल नाही विश्वके सक्कु प्राणी जगतहे काम कैना लिरौसी बनाइठ् । 
ओसिक ते यी पर्व मन्नके आउर मिथक फेन जोरल् बा । श्रीमद्भागवत् पुराण अनुसार यी व्रत सबसे पहिले सन्तनु राजाके पुत्र राजकुमार देवदत्त अँट्वारी व्रत रहलाँ । उहाँ सूर्य उपासक हुइट् । ऊ भोज वियाह फेन नै कैलाँ । राजकुमार देवदत्त चारभाइ रहिंट् । बर्का देवदत्त, भीष्मपितामह, पाण्डु ओ विदरु गुप्ताके लर्का देवदत्त, सुनितीके लर्का भीष्मपितामह अन्ध्रा ओ पाण्डु पाण्डा रोग हुइलक ओरसे पाण्डु नामाकरण हुइलिन् । धार्मिक दृष्टिमे हेर्बाे सूर्य पूजा कर्बाे ते पाण्डु रोग मेटजाइठ् कना प्राचीन धारणा बा । ते यी व्रत पहिले राजकुमार देवदत्त रहलाँ, तब पाण्डु, कुन्ती, माद्री, कर्ण ओ भीम ओकर दादु राजा परिक्षित सूर्य हेतु श्रीमदभागवत सुनैलाँ । यी अब व्रत रैह्के आपन बाबक सोचके उद्धारके लग श्रीमदभागवत सुनैलाँ, ओकरवाद सब द्यौंटा फेन यी महान पर्व माने लग्लाँ । बरे–बरे मुनिलोग सूर्यके उपासकके रुपमे सूरजके जन्म दिन अँट्वारहे अँट्वारी माने लग्लाँ ओ आझ फेन यी ट्युहार चलन चल्टीमे बा । कना बात वीरबहादुर चौधरी आपन किताब ‘वीरबहादुरके ऋतुमे उल्लेख कैले बटाँ । 
दोसर मिथक महाभारत कथासे जोरल बा । पाँच पाण्डव मध्ये सबसे बल्गर भेवाँ (भीम) रहिंट् । जब कौरव ओ पाण्डवके लडाइ पर्लिन । उहे समय भेंवाँ रोटी पकाइ टहिंट् । ऊ रोटी पकैटी–पकैटी टावामे छोरके चल्गैलाँ । जब लराइसे भुँखासल अइला ओ उहे एक्के करे पकाइल रोटी खाके आपन पेट भरैलाँ कना तर्क बावई । कलेसे केक्रो तर्क भेंवाँ थारू राजा दंगीशरणहे लराइमे सघैलक ओ सबसे बल्गर हुइलक ओरसे भेंवाँहस् बल्गर हुइना संकल्पसे साथ अँटवारीमे भेवाँक पूजा कैलक विचार फेन जनमानसमे बा । अँट्वारीमे सबसे पहिले अक्केकरे रोटी पकाके भेवाँहे पुज्ठाँ कना किम्वदन्ती फेन बा । मुले, ठाउँ अन्सार थारू समुदायमे फेन अलग–अलग चलन प्रक्रिया रहल बा । 
अँट्वारी व्रत बैठ्ना ट्युहार हुइलक ओरसे शच्चिरके दिनभर मच्छरी मर्ना आउर टिना टावन खोज्ना कैजाइठ् । मच्छरीक् सुखौरा पहिलेहें फेन बनाइल रहठ् । अँटवारीमे मच्छरी बिशेष मान्जाइठ् । आउर सरशिकार नैरहठ् । सागसेवाँरमे पोंइ, ठुसा लगाके रहठ् । जब सन्झा हुई ते ‘डटकट्टन’ (दर) के नाउँसे कुछ मीठ–मीठ खैना रिझाइल् रहठ् । व्रत बैठुइयन यी रातके मुर्गी बस्नासे पहिले खैठाँ । यदि खैनासे पहिले मुर्गी बोल्गैलाँ कलेसे ऊ खाई नै मिलठ् । कोइ खालेहल कलेसे ऊ अँट्वारी व्रत रहे नैपाइठ् । या ऊ डुठेह्रु हुजाइठ् कना मान्यता बा । 
व्रत बैठुइयन अँट्वारके दिन बिहाने लहाके भुख्ले घरक बहरी या अँग्नामे गाइक गोबरसे सुग्घरके गोब्रैठाँ । आझुक दिन कोरे आगीमे सक्कु खाना पकाजाइठ् । थारु समुदायमे भन्सामे रहल् भित्तरके आगी नै बेल्सठाँ । पुरान आगी चोखा नै मान्जाइठ् । उहे ओरसे गनयारी काठ घोटके निकार चोखा आगीले रोटी पकैठाँ । 
अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल् घुइया, मिठाई दारल् मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी खास मान्जाइठ् । नोन, बेसार, मिर्चा पहिल दिन बर्जित रहठ् । 
जब सक्कु चाज पकाके तयार हुइटे बिहान गोब्रैलक ठाउँमे काठक बैठ्ना (पिर्का या कौनो बैठ्ना वस्तु) पर बैठके आपन प्रक्रिया आगे बर्हैठाँ । खैनासे पहिले अगयारी (अग्यारी) देना चलन बा । अगयारी कलक गाई गोबरसे गोब्रैलक ठाउँमे आगिक अङ्ठा धैके ओँह्पर सर्री धूप, मस्का ओ खाइक लग तयार कैलक बस्तु (अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल घुइया, मिठाई दारल मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी) सक्कु अक्केमे सानके चर्हैनाहे कठाँ । 
सूरज फेन आगीके मुख्य श्रोत हो उहेसे सबसे पहिले आगीहे प्रसाद ग्रहण करैना चलन आइल् । अगयारी देके तीन चो दाहिन ओ तीनचो बाउँ पाजरसे पानीले पर्छना फेन चलन बा । कोइ–कोइ पाँच या सात फेरा फेन सर्छठाँ । ओकर पर्से आपन चेली–बेटिनके लग फेन अग्रासनके रुपमे सक्कु चाज निकर्ना चलन बा । निकारके तब बल्ले खैना चलन बा । खैना क्रम दिन रहटसम किल चलठ् । दिन बुर्टीकिल खैना काम बन्द हुजाइठ् ।
दोसर बिहानके भात, खँरिया, फुलौरी, पोंइ मिलाइल ठुसा, सुखौरा मच्छरी, घुइयक टिना, भेन्डी लगाके विजोर संख्यामे टिनाटावन बनाजाइठ् । मच्छिक सुखौरा विशेष मान्जाइठ् मुले शिकार भर फर्हार कैना पाछे किल मारजाइठ् । जब तयार हुई ते काल्हिक नन्हें लहाके अगयारी देके फेन सक्कु चाज अलग–अलग दोना–टेपरीमे ‘अग्रासन’ कर्ह जाइठ् ओ बल्ले खैना शुरु हुइठ् । खानपिन ओराई ते कार्हल् अग्रासन आपन चेली बेटिन घर देहे जैठाँ । असिके अग्रासन देहे गैलेसे आपन चेलीबेटिनसे आपसी सद्भाव बर्हठ् । अग्रासन चेलीबेटिन बहुत अस्रा कैले रठाँ । ओइने बहुत मानमर्जाद फेन कैठाँ । थारू समुदायमे मानमर्जाद जाँर–मद ओ सरशिकार खवाके कैठाँ । असिके अँटवारी पर्व ओराइठ् । 

सन्दर्भ सामग्री
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६६), हमार पवित्र टयूहार अँटवारी । लौवा अग्रासन । 
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६८) हमार पवित्र टयूहार अँटवारी, । वीरबहादुरके ऋतु । दाङ, देउखुरी साहित्य तथा सांस्कृतिक मञ्च ।

Saturday 23 August 2014

हम्र भुख मुवटी सरकार राहत झट् चहल

गजल

हम्र भुख मुवटी सरकार राहत झट् चहल
बाढी पिडित जिना आधार राहत झट् चहल


दुख पिर भुक् पियास कट्रा सहि हम्र आमि
जीवन बचिना हमन आहार राहत झट् चहल


पहिलक जसिन घर बास हमा समाज निहो
क्षेती पुर्ति सहित संसार राहत झट् चहल


रूइटी बत्या हेर्थी सद्द सरकारी मनैन के
बोली नहि काम बिचार राहत झट् चहल


बैठ्ठल बाटी कैयाँ कुचिल अन्धार रातम
लैव जिन्दगी व अज्जार राहत झट् चहल


राम पछलदङग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ
आव मलेसिया